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Google Pixel 9 सीरीज के डिजाइन का खुलासा
28 Mar 2024
ayushi tripathi

गूगल पिक्सल 9 सीरीज को लेकर एस साल की शुरुआत से ही लीक्स आ रहे हैं। अब नई पिक्सल सीरीज को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। लेटेस्ट लीग रिपोर्ट में ये पता चला है कि इस बार कंपनी नया XL मॉडल भी लॉन्च कर सकती है।

गूगल ने पिछले साल अक्टूबर में Google Pixel 8 Series को लॉन्च हुई थी। अब कंपनी के अपकमिंग सीरीज Google Pixel 9 की चर्चा भी होने लगी है। गूगल पिक्सल 9 सीरीज को लेकर एस साल की शुरुआत से ही लीक्स आ रहे हैं। अब नई पिक्सल सीरीज को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। लेटेस्ट लीग रिपोर्ट में ये पता चला है कि इस बार कंपनी नया XL मॉडल भी लॉन्च कर सकती है। बता दें कि, जनवरी में पिक्सल 9 सीरीज को लेकर जो लीक्स सामने आई थी उसमें ये पता चला था कि कंपनी इस साल Google Pixel 9 और Google Pixel 9 Pro को लॉन्च कर सकती है। लेकिन अब ऐसा माना जा रहा है कि इस बार सीरीज में Google Pixel 9Pro के साथ Google Pixel 9 Pro को लॉन्च कर सकती है। लेकिन, अब ऐसा माना जा रहा है कि इस बार सीरीज में Google Pixel 9 Pro के साथ Google Pixel 9 Pro XL भी लॉन्च किया जा सकता है। Google Pixel 9 सीरीज के नए मॉडल के साथ लेटेस्ट लीक में इसका डिजाइन का भी खुलासा हो गया है। बता दें कि, पिक्सल 9 सीरीज का एक 5K रेंडर वाला 360 डिग्री वीडियो सामने आया है। इस वीडियो से फोन के लुक और डिजाइन का खुलासा हो गया है।


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पर्यावरण संरक्षण स्वस्थ जीवन के लिए बेहद आवश्यक
05 Jun 2020
[ स.ऊ.संवाददाता ]

5 जून के दिन को हर साल 'विश्व पर्यावरण दिवस' के रूप में पूरी दुनिया में व्याप्त तरह-तरह के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कारगर प्रयासों पर मंथन करके, भविष्य में पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण करने के लिए बेहद आवश्यक कदमों पर अमल करने के उद्देश्य से उसकी रूपरेखा बनाने के लिए नीतिनिर्माताओं के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने के लिए सम्पूर्ण विश्व में आम जनमानस के द्वारा हर वर्ष मनाया जाता है। वैसे भी जब इस दिवस को शुरुआत में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासंघ ने पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति वैश्विक स्तर पर सभी देशों के आम जनमानस में राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के उद्देश्य से वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। उसके बाद ही विश्व में 5 जून 1974 को पहला 'विश्व पर्यावरण दिवस' मनाया गया था। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि फिर भी आज विश्व के अधिकांश देशों में बढ़ता प्रदूषण वर्तमान समय की एक सबसे ज्यादा बेहद गंभीर ज्वंलत समस्या बन गया है। कही ना कही विश्व में हर तरफ छिड़ी विकास की अंधाधुंध अव्यवस्थित दौड़ ने जगह-जगह प्रदूषण फैलाने में अपना योगदान देकर हमारी भूमि, जल व वायु को प्रदूषित करके हर तरफ आवोहवा को खराब करने का काम किया है। आज हमारे देश भारत में भी हर तरह का प्रदूषण अपने चरम स्तर पर है, हालांकि देश में पिछले कुछ माह के लॉकडाउन के चलते हर तरफ सभी कुछ बंद होने के कारण पर्यावरण को पुनर्जीवित होने के लिए भरपूर अवसर मिल गया है, जिसके चलते देश में आजकल सभी प्रकार के प्रदूषण से लोगों को काफी राहत मिली है, लेकिन महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न यह है कि देश में पर्यावरण की यह स्थिति लगातार किस प्रकार बनी रहे, अब तो चलो कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए देश में हुए लॉकडाउन से पर्यावरण को संजीवनी मिल गयी, लेकिन लॉकडाउन खुलने के पश्चात भविष्य में यह स्थिति किस प्रकार बरकरार रखें यह चुनौती व जिम्मेदारी देश के हर व्यक्ति को समझनी होगी।

आज हम लोग जिस तरह से बहुत तेजी के साथ अव्यवस्थित ढंग से दुष्प्रभाव के बारे में बिना सोचे समझे आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल कर रहे है वह उचित नहीं है। हमारे देश में किसी भी प्रकार से प्रकृति व पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाकर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन ना करना आज एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। सभी पक्षों के द्वारा कानून पर्यावरण के सरंक्षण पर होने वाले खर्चों में चोरी छिपे कटौती करके, अत्याधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रदूषण नियंत्रण के नियम कानूनों की अनदेखी करने वाली सोच प्रदूषण कम करने में बहुत बड़ी बाधक है। आज हमारे देश के सारे सिस्टम की सोच देश में स्थापित उधोगों के लिए अपने देश के प्राकृतिक संसाधनों का बहुत ज्यादा दोहन करने की हो गयी है, जिसके चलते हम स्वयं भूमि, जल व वायु को प्रदूषित करके देश को जल्द से जल्द विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों की श्रेणी में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। आज और भविष्य में यह स्थिति हम सभी के स्वास्थ्य व पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद घातक है और इस समस्या से हमारे देश के नीतिनिर्माता ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के पर्यावरण प्रेमी भी अवगत और चिंतित है। आज खुद मानव जनित घातक प्रदूषण के चलते मनुष्य व जीव जंतु जिस तरह के प्रदूषित वातावरण में रह रहे है, अगर स्थिति को यही पर समय रहते तत्काल नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले समय में अब तरह-तरह की समस्याओं के चलते स्थिति दिन-ब-दिन बहुत तेजी से खराब होती जायेगी। यह हालात बरकरार रहे तो देश में बहुत सारी जगहों पर पीने योग्य पानी, सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु व केमिकल रहित मिट्टी बीते दिनों की बात हो सकती है। देश में हर तरफ प्रदूषण की भयावह हालात होने के बाद आज भी हमारे देश में बार-बार पर्यावरण संरक्षण को लेकर के नियम कायदा-कानूनों के सही ढंग से अनुपालन के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय से बेहद तल्ख टिप्पणी आती है, हमारे देश के सिस्टम को प्रदूषण व पर्यावरण से जुड़े बेहद गंभीर मसलों पर एनजीटी जैसी महत्वपूर्ण शीर्ष संस्था आयेदिन फटकार लगाती रहती है, लेकिन उसके बाद भी पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद आवश्यक प्रभावी कदम कागजों की बंद फाईल से निकल कर धरातल पर न जाने क्यों व किसके दवाब में आसानी से कार्यान्वित नहीं हो पाते हैं। सरकार की बात करें तो देश में बेहद तेजी के साथ बढ़ते प्रदूषण के स्तर के बाद भी पर्यावरण संरक्षण के बेहद ज्वलंत मसले पर केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की रोजमर्रा की कार्यप्रणाली में प्रदूषण नियंत्रण धरातल पर प्राथमिकता में बिल्कुल भी नजर नहीं आता है। आज हम सभी देशवासियों को समय रहते यह समझना होगा कि पर्यावरण संरक्षण सिर्फ 'विश्व पर्यावरण दिवस' पर भाषण देकर, फिल्म देखकर, किताब पढ़कर या लेख लिखकर नहीं हो सकता, बल्कि हर भारतवासियों को अपनी प्यारी धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी दिल व दिमाग दोनों से समझनी होगी, तभी भविष्य में धरातल पर प्रदूषण नियंत्रण के कुछ ठोस प्रभाव नजर आ सकेंगे। लेकिन बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि चंद लोगों को छोड़कर हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण के मसले पर किसी भी पक्ष में कोई गंभीरता नजर नहीं आती है। लेकिन देश में इसकी आड़ में बहुत लम्बे समय से सरकारी फंड की जबरदस्त बंदरबांट जरूर जारी है। हर वर्ष करोड़ों वृक्ष लगा दिये जाते है जो सिवाय कागजों के कहीं नजर नहीं आते हैं। देश में पर्यावरण संरक्षण के बेहद ज्वंलत मसले पर सुप्रीम कोर्ट की तय गाइडलाइंस व एनजीटी के निर्णयों पर अमल की स्थिति को देखकर लगता है कि कही ना कही हमारे देश के सिस्टम की भयंकर इरादतन लापरवाही के चलते सर्वोच्च संस्थाएं अब पर्यावरण संरक्षण के अपने निर्णयों पर अमल कराने में अपने आपको असहाय लाचार महसूस कर रही है।कोरोना संक्रमण से बचने के लिए देश में किये गये लॉकडाउन के बाद आया 'विश्व पर्यावरण दिवस' इस बार हम सभी लोगों को एक बेहद महत्वपूर्ण सबक देता है कि देश में हर तरफ फैले बेहिसाब घातक प्रदूषण के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, क्योंकि जिस तरह से देश में कल-कारखाने व अन्य सभी कुछ कार्य बंद होने के चलते जल, वायु व भूमि प्रदूषण में चंद दिनों में ही भारी कमी आयी है, उसने सभी विशेषज्ञों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है। आज जो नदियां करोड़ों रुपये सालाना स्वच्छता पर खर्च करने के बाद भी साफ नहीं हो पा रही थी।

वह सभी लॉकडाउन में सब कुछ बंद होने के चलते स्वतः साफ हो गयी हैं। लॉकडाउन की वजह से साफ हुए नदी, जल स्रोत, स्वच्छ वायु, साफ नीले तारे टिमटिमाता आसमान, स्वछंद घूमते -जंतु आदि हम सभी को एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश देते है कि यह सब घातक प्रदूषण मानव के द्वारा स्वयं पैदा किया गया है। इसलिए प्रकृति का हम सभी लोगों के लिए बिल्कुल स्पष्ट संदेश है कि देश में भूमि, जल, वायु व ध्वनि प्रदूषण कम करने की जिम्मेदारी हमारी खुद की है, आज से ही हम सभी लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवनदायिनी प्रकृति के साथ तालमेल बना कर चलना होगा, भविष्य में हमको प्राकृतिक संसाधनों का सोच-समझकर और बेहद संभलकर उपयोग करना होगा, तब ही आने वाले समय में देश में पर्यावरण का संरक्षण ठीक से होगा और हम सभी लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को प्रकृति पूर्ण कर पाएगी। आज हमको ध्यान रखना होगा कि प्रदूषण का बढ़ते स्तर का ज्वंलत मुद्दा, आने वाले समय में देशों में सीमा, जाति और अमीर-गरीब की दीवारों को समाप्त करने वाला यह ऐसा मुद्दा होगा जिस पर पूरी दुनिया के लोगों को जीवन को सुरक्षित बचायें रखने के लिए हर हाल में एक होना होगा। आज हमको अपने सेवा भाव, दृढसंकल्प व दृढ इच्छाशक्ति के बलबूते देश में पर्यावरण संरक्षण को भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से बाहर लाकर, हर भारतवासी को प्रकृति व पर्यावरण के प्रति अपनी बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को समय रहते दिल व दिमाग दोनों से समझना होगा, तभी भविष्य में प्रदूषण कम होगा और धरातल पर पर्यावरण संरक्षण के कुछ ठोस प्रभाव नजर आ सकेंगे।


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बिरयानी हो तो हैदराबादी हो...वाकई इसके स्वाद का कोई जवाब नहीं
05 Feb 2019
[ स.ऊ.संवाददाता ]

पिछले दिनों हैदराबाद जाना हुआ तो पेट में बिरयानी बिरयानी होता रहा। उस दिन हम घूमने निकले तो मैंने अपने साढू कमलेश से कहा आज बिरयानी भी खा लेते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी को फोन किया कि आप लंच कर लें हम बिरयानी खाने जा रहे हैं।

स्वाद चुंबक की मानिंद होता है। कुछ चीज़ें खाने का हम बरसों इंतज़ार करते हैं लेकिन खा नहीं सकते। इस नहीं खा सकने में व्यक्तिगत, पारिवारिक, धार्मिक या आर्थिक लोचे हो सकते हैं। कभी अवसर सामने खड़ा होता है और हम आगे बढ़ जाते हैं। पिछले दिनों हैदराबाद जाना हुआ तो पेट में बिरयानी बिरयानी होता रहा। उस दिन हम घूमने निकले तो मैंने अपने साढू कमलेश से कहा आज बिरयानी भी खा लेते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी को फोन किया कि आप लंच कर लें हम बिरयानी खाने जा रहे हैं।

विविध स्वादों की धरती, चार सौ साल पुराने हैदराबाद जाकर आप गोलकुंडा फोर्ट, चार मीनार या चकित कर देने वाले अनुभवों से गुजरने के लिए रामोजी फिल्म सिटी में थक आओ लेकिन जब तक आपने दुनिया भर में मशहूर हैदराबादी बिरयानी हज़म नहीं की तब तक समझिए आप हैदराबाद के नहीं हुए। बिरयानी कभी राजसी खाना होता था अब वक़्त बदलने के साथ यहाँ बिरयानी खाने की अनगिनत जगहें हैं। लेकिन कहते हैं एक दो जगह तो ऐसी होती ही है जो मानी जाती है अपने मूल, असली व विश्वसनीय स्वाद के लिए। बिरयानी पूरे देश में उपलब्ध है लेकिन यह लाजवाब स्वाद लेने के लिए दुनिया भर से लोग हैदराबाद आते हैं। बेशक डिजिटल होती ज़िंदगी में आप घर बैठे बिरयानी खा सकते हैं लेकिन जैसे किताब को हाथ में पकड़ कर पढ़ने का जो मज़ा है वैसा ही खाने का मज़ा तो रसोई के पास ही है। प्रोसेसिंग व पैकेजिंग ने स्वाद संवारा नहीं बिगाड़ा है।

बिरयानी परोसने का एक तरीका है। इसे आप खुद नहीं परोस सकते यदि आप को पता नहीं है। कमलेश ने बताया कि बिरयानी लाने वाला ही सर्व करेगा। सर्व करने के लिए उन्होंने विशेष तरीके से बिरयानी वाले बर्तन में चम्मच डाला और पहले चावल आपकी प्लेट में डाले गए फिर मसाले के साथ मीट या चिकन। इसमें बासमती का हर चावल अलग अलग है यह न कम, न ज़्यादा बल्कि सही पके हुए हैं। कम ग्रेवी में मसालों का सम्मिश्रण बेहद संतुलित व उम्दा है। केसर की विशिष्ट खुशबू इसमें खूबसूरत रंग और बेमिसाल स्वाद उगाती है। बिरयानी खाने से पहले या इसके साथ सलाद न खाने की सलाह दी जाती है। हां, साथ में पतली-सी दही, हरी चटनी और सालन परोसा जाता है। वैसे शाकाहारी बिरयानी भी यहां उपलब्ध है लेकिन बिरयानी का सही मज़ा लेना हो तो मीट या चिकन बिरयानी में ही लिया जा सकता है। खाते समय, यहां अनेक मसाले काँच के बड़े बड़े मर्तबान में सजे देख स्वाद और बढ़ गया। यहाँ बैठने व परोसने का तरीका सहज पारम्परिक है। यहां जो भी आता है स्वाद के कारण और स्वाद के कारण ही विश्व ब्रैंड बन जाने के कारण। टेक होम सुविधा है। इस जगह देश विदेश में मशहूर फिल्मी सितारे, क्रिकेट सितारे आ चुके हैं। यहाँ लगभग चार सौ लोग एक साथ खा सकते हैं।




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IRCTC दे रहा है साउथ इंडिया के 6 शहरों में घूमने का मौका
02 Jan 2019
[ स.ऊ.संवाददाता ]

आईआरसीटीसी दे रहा है 48 हजार रुपए में साउथ इंडिया के 6 खूबसूरत शहरों को घूमने का मौका। धार्मिक से लेकर ऐतिहासिक हर एक जगह की सैर आप इस पैकेज में कर पाएंगे।

दक्षिण भारत के खूबसूरत जगहों की सैर कराने के लिए आईआरसीटीसी लेकर आया है आपके लिए खास टूर पैकेज। जिसमें आप चेन्नई, तिरुपति, त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी, रामेश्वरम और मदुरै के मशहूर जगहों की कर सकते हैं सैर। 7 दिन और 6 रातों वाले इस पैकेज में साउथ इंडिया के 6 शहरों को घूमने का मौका मिलेगा। इस खास टूर पैकेज का नाम साउथ इंडिया डिवाइन टूर पैकेज है। जिसकी शुरूआत दिल्ली से हो रही है।टूर की शुरूआत मार्च की अलग-अलग तारीख से हो रही हैं। 1 मार्च, 12 मार्च, 19 मार्च और 24 मार्च 2019 वाले इस पैकेज में कुछ 30 सीटें अवेलेबल हैं। जिसमें यात्रियों के फ्लाइट खर्चे से लेकर अच्छे होटल्स में रूकने की सुविधा, ब्रेकफास्ट और डिनर और 6 शहरों के प्रमुख जगहों के सैर की भी व्यवस्था होगी।साउथ इंडिया डिवाइन टूर पैकेज में आप केरल के मशहूर पद्नाभस्वामी मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर, कन्याकुमारी के फेमस विवेकानंद रॉक मेमोरियल, रामानाथस्वामी मंदिर के दर्शन कर पाएंगे। जिसके लिए प्रति व्यक्ति कीमत 48 हजार रुपए है। अगर आप तीन लोगों की टिकट एक साथ बुक कराएंगे तो इसके लिए प्रति व्यक्ति कीमत 36,650 रुपए है और अगर दो लोगों एक साथ घूमने जा रहे हैं तो प्रति व्यक्ति कीमत 37,540 रुपए है।


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इस योगासन का करें रोजाना नहीं होगा कभी भी सिरदर्द
30 Dec 2018
[ स.ऊ.संवाददाता ]

उत्तानासन नर्वस सिस्टम में रक्त की आपूर्ति को बढ़ाकर दिमाग को शांत करता है। साथ ही यह कोशिकाओं में ऑक्सीजन प्रवाह को बेहतर बनाता है। यह सिरदर्द को दूर करने के लिए एक बेहतरीन आसन माना गया है। इसका अभ्यास करने के लिए पहले सीधे खड़े हो जाएं।सिरदर्द एक ऐसी समस्या है, जिसका हर व्यक्ति ने कभी न कभी सामना अवश्य किया है। कुछ लोगों को यह समस्या लगातार बनी रहती है तो कभी−कभी काम के तनाव के चलते हल्के सिरदर्द की शिकायत होती है। आमतौर पर, सिरदर्द होने पर लोग दवाइयों का सेवन करते हैं लेकिन अगर कुछ योगासनों का अभ्यास किया जाए तो सिरदर्द की समस्या होगी ही नहीं और जिन्हें यह समस्या है, उन्हें भी काफी हद तक राहत मिलेगी। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में−

विपरीतकर्णीआसन शरीर को मजबूत व लचीला बनाने का काम करता है। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क में रक्त प्रचुर मात्रा में जाने से उसके सभी विकार दूर होते हैं। यह आसन सिरदर्द व चक्कर आने जैसी समस्या को भी दूर करता है। इस आसन का अभ्यास करने के लिए दीवार का सहारा भी लिया जा सकता है। इसके लिए दीवार के नजदीक पीठ के बल लेट जाएं। अब पैरों को दीवार से लगाकर सीधा करें। अब दीवार के सहारे अपने पैरों को ऊपर उठाएं। यह धीरे−धीरे करें। अब अपने कूल्हों को ऊपर की तरफ उठाएं। शरीर को अपने हाथों से सहारा दें। अपनी गर्दन, कंधे और चेहरे को स्थिर रखें। इस अवस्था में 5 मिनट तक गहरी सांस लें और फिर सांस छोड़ें। धीरे−धीरे इस अवस्था से बाहर आएं।

अधोमुखश्वासन

यह आसन सिर्फ कमरदर्द, हाथ, पैर व गर्दन की मांसपेशियों के लिए अच्छे नहीं माने जाते। बल्कि इस आसन के अभ्यास के दौरान शरीर उल्टे वी के समान दिखाई देता है और उल्टा होने के कारण सिर की तरफ रक्त व ऑक्सीजन का प्रवाह बेहतर तरीके से होता है, जिससे सिरदर्द से राहत मिलती है। इस आसन का अभ्यास करने के लिए पेट के बल लेटें। इसके बाद अपने हाथों व पैरों को जमीन से लगाते हुए त्रिभुज की भांति शरीर की आकृति बनाते हुए कमर को उपर उठाएं। इस पॉश्चर में कुछ देर रूकें और गहरी सांस लें। इसके बाद सामान्य अवस्था में लौट आएं।

उत्तानासन

उत्तानासन नर्वस सिस्टम में रक्त की आपूर्ति को बढ़ाकर दिमाग को शांत करता है। साथ ही यह कोशिकाओं में ऑक्सीजन प्रवाह को बेहतर बनाता है। यह सिरदर्द को दूर करने के लिए एक बेहतरीन आसन माना गया है। इसका अभ्यास करने के लिए पहले सीधे खड़े हो जाएं। अब सांस छोड़ते हुए कूल्हों की तरफ से मुड़ते हुए नीचे झुके। ध्यान रहे कि आपके घुटने न मुड़ें तथा पैर एक−दूसरे के समानांतर हों। अब अपनी छाती को पैरों के बीच में करें तथा कूल्हे की हडि्डयों में खिंचाव को महसूस करें तथा हाथों से अपने पंजों को छुएं। आपका सिर अब फर्श तक पहुंच जाएगा। अब कुछ देर तक इसी अवस्था में रहें। अब सांस लेते हुए हाथों को अपने कूल्हें पर रखें तथा धीरे−धीरे सामान्य अवस्था में लौट आएं।


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नेचुरल ब्यूटी से घिरे ढाका में है मिला-जुला इस्लामिक और बंगाली कल्चर
28 Dec 2018
[ स.ऊ.संवाददाता ]

ढाका बांग्लादेश की राजधानी होने के अलावा बांग्लादेश का औद्यौगिक और प्रशासनिक केन्द्र भी है। लेकिन ये शहर बूढ़ी गंगा नदी के तट बसा है इसलिए ये काफी खूबसूरत भी है। ढाका को राजनीतिक गतिविधियों का गढ़ माना जाता है।

भारत के पड़ोसी देश के बारे में तो आपने सुना ही होगा... एक बड़ा ही खूबसूरत देश है... हम बात कर रहे हैं खूबसूरत बांग्लादेश की। बांग्लादेश की राजधानी ढाका घूमने के लिए बहुत ही अच्छी जगह है। यहां से भारत का कोई सरहदी दुश्मनी का नाता नहीं है न ही गोली लगने का डर, तो आप जा सकते हैं ढाका घूमने के लिए। यहां पर एक्सप्लोर के लिए बहुत कुछ है। नेचुरल ब्यूटी से घिरे ढाका में मिला-जुला इस्लामिक और बंगाली कल्चर आपको देखने को मिलेगा।

ढाका बांग्लादेश की राजधानी होने के अलावा बांग्लादेश का औद्यौगिक और प्रशासनिक केन्द्र भी है। लेकिन ये शहर बूढ़ी गंगा नदी के तट बसा है इसलिए ये काफी खूबसूरत भी है। ढाका को राजनीतिक गतिविधियों का गढ़ माना जाता है लेकिन यहां की खूबसूरती पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है।

मुगल शासन काल में ढाका को जहांगीर नगर के नाम से जाना जाता था। उस समय यह बंगाल प्रांत की राजधानी था। वर्तमान ढाका का निर्माण 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों के अधीन हुआ। जल्द ही कलकत्ता के बाद ढाका बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा नगर बन गया। बंटवारे के बाद ढाका पूर्वी पाकिस्ताान की राजधानी बना। 1972 में यह बंगलादेश की राजधानी बना। यहां पुरानी और नई सभ्यताओं के कई नमूने देखने को मिलते हैं।

यहां राष्ट्रीय स्मारक देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। यह स्मारक ढाका से थोड़ा ही दूर लगभग 35 किलोमीटर दूर साभर में स्थित है। इस स्मारक का डिजाइन मोइनुल हुसैन ने तैयार किया था। यह स्मारक उन लाखों सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने बंगलादेश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

ढाका में बना लालबाग किला काफी विशाल है। इस किले का निर्माण बादशाह औरंगजेब के पुत्र शाहजादा मुहम्मद आजम ने करवाया था। यह किला भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) का मूक गवाह है। 1857 में जब स्थानीय जनता ने ब्रिटिश सैनिकों के विरुद्ध विद्रोह किया था तब 260 ब्रिटिश सैनिकों ने यहीं शरण ली थी। इस किले में पारी बीबी का मकबरा, लालबाग मस्जिद, हॉल तथा नवाब शाइस्ता खान का हमाम भी देखने योग्य है। यह हमाम वर्तमान में एक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है।

धान, गन्ना और चाय का सबसे ज्यादा व्यापार यहीं से होता है। टोंगी, तेजगांव, डेमरा, पागला, कांचपुर में रोजाना जरूरत की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मोतीझील यहां का मुख्य कमर्शियल एरिया है। ढाका का प्रसिद्ध सदरघाट बूढ़ी गंगा नदी पर बना हुआ है। यहां हर वक्त सैलानियों से लेकर स्थानीय लोगों की चहल-पहल देखी जा सकती है। सदरघाट के सुंदर नजारों को देखने के लिए बोट, स्टीमर, पैडल स्टीमर, मोटर आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं।


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पंजाबी स्टाइल में बनाएं सरसों का साग, सब उंगलियां चाटते रह जाएंगे
26 Dec 2018
[ स.ऊ.संवाददाता ]

अगर आप भी चाहती हैं कि हर कोई आपके साग की तारीफ ही करता रह जाए, तो इस अंदाज में इसे बनाएं। आइए आपको बताते हैं पंजाबी स्टाइल में साग बनाने की विधि। यह विधि बहुत ही आसान सी है।

ठंड के मौसम में सिर्फ पंजाबी ही नहीं, बल्कि हर किसी के घर में सरसों का साग जरूर बनता है। लेकिन इसका असली मजा तब ही आता है, जब इसे पंजाबी स्टाइल में बनाया जाए। अगर आप भी चाहती हैं कि हर कोई आपके साग की तारीफ ही करता रह जाए, तो इस अंदाज में इसे बनाएं। तो चलिए जानते हैं पंजाबी स्टाइल साग बनाने की विधि−

सामग्री−

आधा किलो साग

250 ग्राम बथुआ

250 ग्राम पालक

लहसुन

अदरक

हरी मिर्च

नमक

दो तीन चम्मच मकई का आटा

प्याज कटा हुआ

एक कटा टमाटर

धनिया पाउडर

सूखी लाल मिर्च

विधि− साग बनाने के लिए पहले साग, बथुआ और पालक को काटकर पहले अच्छी तरह धो लें। याद रखें कि इसमें मिट्टी काफी होती है और इसलिए अगर इसे सही तरह से नहीं धोया जाता है तो इससे साग किरकिरा बनता है। साग को धोने व काटने के बाद एक कूकर में उसे डालकर नमक व थोड़ा-सा पानी डालकर मीडियम आंच पर एक सीटी आने तक पकाएं।

जब कूकर की सीटी निकल जाए और साग हल्का ठंडा हो जाए, तो इसमें अदरक, लहुसन और हरी मिर्च डालकर रई की मदद से साग को मैश करें। अब साग को प्लेट से हल्का ढक कर मध्यम आंच पर पकाएं। साथ ही बीच−बीच में प्लेट हटाकर रई की मदद से मैश करते रहें।

पकाते समय अगर साग में पानी बिल्कुल खत्म हो जाए तो आप हल्का-सा पानी उबाल कर इसमें डाल सकते हैं। जब पत्ते अच्छी तरह पक जाएं तो इसमें दो−तीन चम्मच मकई का आटा व थोड़ा-सा गर्म पानी डालकर मिक्स करें।

अब बारी आती है साग का तड़का तैयार करने की। तड़का बनाने के लिए एक पैन में घी डालकर इसमें कटी हुई प्याज डालें। जब प्याज भुन जाए तो इसमें एक कटी हुई हरी मिर्च, बारीक कटी अदरक व लहसुन डालें। अब इसमें एक कटा टमाटर, थोड़ा सा नमक व धनिया पाउडर डालें व थोड़ी देर ढककर पकाएं। अगर आप चाहें तो मसाला भुनने के लिए थोड़ा सा पानी भी डाल सकते हैं। जब मसाला तैयार हो जाए तो इसमें साग डालकर अच्छी तरह मिक्स करें।

अब एक तड़का पैन में थोड़ा-सा घी डालकर उसमें हींग, हरी मिर्च व सूखी लाल मिर्च डालकर तड़काएं। अब इस तड़के को तैयार साग में डालें।

आपका लजीजदार पंजाबी स्टाइल साग तैयार है। बस इसे सर्विंग बाउल में निकालें और गरमा−गरम मक्का की रोटी के साथ सर्व करें।




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क्रिसमस डे सेलिब्रेशन के लिए ये जगह है सबसे बेस्ट...
25 Dec 2018
[ स.ऊ.संवाददाता ]

पहाड़ों के प्राकृतिक नजारों के बीच आप क्रिसमस डे मना सकते हैं। क्रिसमस में बेस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को माना जाता है। क्रिसमस पर यहां काफी धूम रहती है। दिसंबर में पहाड़ों पर बर्फबारी भी होती है। ऐसे में आपके क्रिसमस डे का मजा स्नोफॉल से दुगुना हो जाएगा।

साल में एक दिन आता है जब सांता निकोलस धरती पर आते हैं और बच्चों को बहुत सारे गिफ्ट देकर जाते हैं। ये लाइन तो हर मां-बाप ने क्रिसमस डे पर अपने बच्चों से जरूर कही होगी, क्योंकि ईसाई धर्म में ऐसा माना जाता है कि क्रिसमस के दिन यीशु मसीह खुद सांता के रूप में आते हैं और सबको प्यार करके जाते हैं। साल के अंतिम दिनों में आने वाला खुशियों भरा ये त्योहार यीशू के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन का एक खास महत्व ये भी है कि विश्व भर में इस दिन को सबसे बड़ा दिन भी कहा जाता है और इस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश होता है। ईसाई धर्म में इसका खास महत्व है इसलिए लोग क्रिसमस को बहुत ही धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे की क्रिसमस डे की अलसी धूम कहां मचती है और ऐसी कौन-सी जगह है जहां जाकर आपका क्रिसमस यादगार बन जाएगा-

शिमला

पहाड़ों के प्राकृतिक नजारों के बीच आप क्रिसमस डे मना सकते हैं। क्रिसमस में बेस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को माना जाता है। क्रिसमस पर यहां काफी धूम रहती है। दिसंबर में पहाड़ों पर बर्फबारी भी होती है। ऐसे में आपके क्रिसमस डे का मजा स्नोफॉल से दुगुना हो जाएगा।

पुड्डुचेरी

पुड्डुचेरी में क्रिसमस डे काफी धमाकेधार अंदाज में मनाया जाता है। रात में पूरा पुड्डुचेरी रोशनी से जगमगा जाता है। यीशू का जन्म होते ही खूब आतिशबाजियां होती हैं। क्रिसमस के दिनों में इस शहर की रौनक दोगुनी बढ़ जाती है। दूर-दराज से लोग अपने परिवार संग यहां क्रिसमस मनाने आते हैं।

केरल

क्रिसमस के मौके पर केरल को दुल्हन की तरह तरह सजाया जाता है। भारत के केरल में ईसाइयों की संख्या ज्यादा है, इसलिए यहां क्रिसमस की धूम देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इस फेस्टिवल में ज्यादातार गलियां क्रिसमस ट्री और बड़े-बड़े स्टार्स से सज जाती हैं। यह रौनक गलियों तक ही नहीं रहती है बल्कि मार्केट में भी नज़र आती है। अगर आप कोच्चि जा रहे हैं तो 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के जरिए बनाए गए सेंट फ्रांसिस चर्च का दीदार करने ना भूलें।

कोलकाता

अब बात करते हैं कोलकाता की तो कोलकाता किसी से कम नहीं है। हर त्योहर की धूम कोलकाता में दिखाई पड़ती है तो इसमें क्रिसमस डे कैसे पीछे हो सकता है। कोलकाता की सड़कें और संकरी गलियां क्रिसमस पर रोशनी के रंग से जगमगाती हैं। चारों ओर इमारतों को लाइट्स और बड़े-बड़े स्टार्स से सजाया जाता है। कोलकाता में इस दिन सेंट पॉल कथेड्रल में बहुत भीड़ देखने को मिलेगी। यहां पर 25 तारीख की रात को 12 बजते ही जीसस क्राइस्ट का जन्म मनाया जाता है।

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गोवा

गोवा देश-विदेश में अपने पार्टी कलचर के लिए जाना जाता है। भारत के अन्य राज्यों की तुलना में यहां पर चर्च की संख्या ज्यादा है और ईसाई भी ज्यादा मात्रा में हैं इसलिए गोवा में भी क्रिसमस वीक का जश्न बेहद ही खास होता है।




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सर्दी लग गयी है? नाक बंद हो गयी है? यह घरेलू उपाय देंगे तत्काल राहत
21 Dec 2018
[ स.ऊ.संवाददाता ]

भाप के जरिए बंद नाक से आसानी से राहत पाई जा सकती है। इसके लिए बस एक बर्तन में गर्म पानी डालें और फिर बर्तन के ऊपर मुंह करके एक टावल की मदद से अपना मुंह ढक लें। कुछ देर तक स्टीम को महसूस करें।

मौसम में चाहे बच्चे हों या बड़े, हर किसी को सर्दी−जुकाम या नाक बंद होने की समस्या का सामना करना ही पड़ता है। भले ही यह समस्या मामूली-सी हो और तीन से पांच दिन में ठीक हो जाए लेकिन इस समस्या के दौरान व्यक्ति को काफी परेशानी होती है। कई बार लोग राहत पाने के लिए दवाईयों का भी सहारा लेते हैं लेकिन वास्तव में आप कुछ घरेलू उपाय के जरिए भी बंद नाक को आसानी से खोल सकते हैं−

भाप के जरिए बंद नाक से आसानी से राहत पाई जा सकती है। इसके लिए बस एक बर्तन में गर्म पानी डालें और फिर बर्तन के ऊपर मुंह करके एक टावल की मदद से अपना मुंह ढक लें। कुछ देर तक स्टीम को महसूस करें। कुछ ही देर में बंद नाक खुलने लगेगी।

नाक बंद होने की स्थिति में खुद को हाइड्रेट अवश्य रखें। खासतौर से, इस दौरान गर्म पानी का ही सेवन करें। इससे आपको काफी राहत महसूस होगी। हाइड्रेटेड रहने पर नाक में मौजूद म्यूकस पतला होता है और जिससे आपके साइनस पर दबाव कम होता है। आप हाइड्रेट रहने के लिए गर्म पानी के साथ−साथ सूप या चाय आदि का सेवन भी कर सकते हैं।

आपको शायद जानकर हैरानी हो लेकिन प्याज भी बंद नाक से छुटकारा दिलाने में मददगार है। बस आपको इतना करना है कि प्याज को छीलकर करीबन 5 मिनट के लिए सूंघें। इससे आपको सांस लेने में आसानी होगी।

नींबू भी बंद नाक को खोलने में काफी कारगर होता है। इसके लिए करीबन दो टेबलस्पून नींबू के रस में आधा टीस्पून काली मिर्च पाउडर व एक चुटकी नमक मिलाकर उसे अपनी नाक पर लगाएं। अब इसे कुछ देर के लिए छोड़ दें। कुछ ही देर में आपको काफी राहत महसूस होगी।

तुलसी के औषधीय गुणों से हर कोई वाकिफ है। यह एक ऐसी जड़ी−बूटी है जो कई तरह की समस्याओं से आसानी से राहत दिलाती है। जुकाम या बंद नाक होने पर भी तुलसी का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आप बस ताजा तुलसी के पत्तों को नाश्ते से पहले व रात को भोजन के बाद चबाएं। आप चाहें तो चाय में भी तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल करें। इससे आपको काफी लाभ होगा।

शहद पोषक तत्वों से भरपूर है। अगर दो चम्मच शहद को गर्म पानी, दूध या चाय के साथ सेवन किया जाए तो इससे बंद नाक को खोलने में मदद मिलती है। खासतौर से, रात को सोने से पहले इसका सेवन अवश्य करें।


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एलीफैंट सफारी पर जाएं इन 8 जंगलों में, हौदे में बैठ कर करें सैर
16 Oct 2017
[ स.ऊ.संवाददाता ]

एलीफैंट सफारी पर जाएं इन 8 जंगलों में, हौदे में बैठ कर करें सैरएलीफैंट सवारी पर जंगलों को घूमने का अलग ही मजा है। आइए आपको कराते हैं भारत के प्रसिद्ध नेशनल पार्को की एक सैर...

1. कार्बेट नेशनल पार्क

जिम कार्बेट नेशनल पार्क भारत का सबसे पुराना राष्‍ट्रीय पार्क है। उत्‍तराखंड में स्‍थित यह राष्‍ट्रीय उद्यान खासतौर से बाघों के लिए जाना जाता है लेकिन यहां हाथी भी काफी संख्‍या में देखने को मिल जाते हैं। दुनिया के कोने-कोने से पर्यटक यहां आते हैं। हाथियों को देखना है तो आप शाम के समय इस जंगल सफारी की सैर पर निकलें। यहां कुछ अनुभवी गाइड भी रहते हैं जो आपको जानवरों की आदतों और उनक दिनचर्या के बारे में सटीक जानकारी दे सकते हैं।

2. बांधवगढ़ नेशनल पार्क

हाथी पर बैठकर जंगल सफारी का आंनद उठाना चाहते हैं तो अबकी बार मध्‍यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क का टूर प्‍लॉन कर सकते हैं। इस राष्‍ट्रीय उद्यान में आप चाहें तो जीप में घूमते हुए टहलते हुए जानवरों को देख सकते हैं, वहीं एलीफैंट सफारी में हाथी की सवारी का अलग ही मजा है।

3. कान्‍हा नेशनल पार्क

मध्‍यप्रदेश में स्‍थित कान्‍हा नेशनल पार्क भी हाथियों के लिए जाना जाता है। बाघ के अलावा इस पार्क में हाथियों की संख्‍या काफी ज्‍यादा है। कान्हा में ऐसे अनेक दुर्लभ प्रजाति के जीव जन्तु मिल जाएंगे। पार्क के पूर्व कोने में पाए जाने वाला भेड़िया, चिन्कारा, भारतीय पेंगोलिन, समतल मैदानों में रहने वाला भारतीय ऊदबिलाव और भारत में पाई जाने वाली लघु बिल्ली जैसी दुर्लभ पशुओं की प्रजातियों को यहां देखा जा सकता है।

4. पेंच नेशनल पार्क

अनेक दुर्लभ जीवों वाला पेंच नेशनक पार्क पर्यटकों को तेजी से अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। हाथी पर बैठकर जंगल की सफारी का अनुभव काफी खास होता है।

5. काजीरंगा नेशनल पार्क

असम में स्‍थित काजीरंगा नेशनल पार्क एक सींग वाले गैंडे के लिए प्रसिद्ध है। यहां अलग-अलग प्रजाति के जीव-जंतु देखने को मिल जाते हैं। अगर आप काजीरंगा में हाथी पर बैठकर जंगल की सैर करना चाहते हैं, तो आपको इसकी पूरी सुविधा मिलेगी।

असम के गुवाहाटी में स्‍थित मानस नेशनल पार्क विश्‍व धरोहरों में शामिल है। हिमालय की तलहटी में स्‍थित इस अभयारण्‍य में दुर्लभ वन्‍य जीव पाए जाते हैं। जिसमें कि हेपीड खरगोश, गोल्‍डन लंगूर और पैगी हॉग शामिल हैं। इन्‍हें देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।

असम के डिब्रूगढ़ में स्‍थित सैखोवा नेशनल पार्क मुख्‍य रूप से सफेद पंखों वाले देवहंस के संरक्षण के लिए बनाया गया था। बाद में यह राष्‍ट्रीय उद्यान जंगली घोड़ों और चमकदार सफेद पंखों वाली बतख के रूप में प्रसिद्ध हो गया। यहां पक्षियों की करीब 350 से ज्‍यादा प्रजातियां पाई जाती हैं।कर्नाटक में स्‍िथत नागरहोल अपने वन्‍य जीव अभयारण्‍य के लिए विश्‍व प्रसिद्ध है। यह उन जगहों में से है जहां एशियाई हाथी पाए जाते हैं। यहां हाथियों के बड़े-बड़े झुंड देखे जा सकते हैं। वहीं बारिश होते ही दूर-दूर से पक्षी यहां आ जाते हैं।


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